हमारे भारत देश की आजादी के संघर्ष मे अनेक स्वतंत्रता क्रांतिवीरों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया, तब जाके हमे आज़ादी मिली। उन सभी महान क्रांतिकारी में से एक है , शहीद भगत सिंह ! उनके बिना हमारे भारत देश की आजादी और आजादी का इतिहास अधूरा है। इसलिए महान क्रांतिवीर शहीद भगत सिंह की जीवनी को हम सविस्तार इस ब्लॉग में जानेगे।
भगत सिंह की कहानी | Bhagat Singh Information In Hindi
भगत सिंह जन्म | २९ सितंबर १९०७ |
भगत सिंह के माता का नाम | विद्यावती |
भगत सिंह के पिता का नाम | सरदार किशन सिंह |
स्कूल का नाम | दयानन्द अग्लो वैदिक स्कूल (D. A. V School) |
जालियाँ वाला बाग़ हत्याकांड | १३ अप्रैल १९१९ |
भगत सिंह को फांसी की सज़ा | २३ मार्च १९३१ |
शहीद भगत सिंह का आरभिक जीवन
भगत सिंह के चाचा और पिताजी स्वतंत्रता सेनानी थे। वह दोनों जेल मे थे। जिस दिन भगत सिंह का जन्म हुवा। उस दिन वह रिहा हो गए। इसलिए घर मे बहुत ख़ुशी का महौल हो गया। भगत सिंह का जन्म २९ सितंबर १९०७ मे बंग गाँव , लायलपुर जिला , पंजाब मे हुवा। लेकिन यह जगह वर्तमान मे पाकिस्तान मे है।
भगत सिंह का जन्म ऐसे परिवार मे हुवा। जिस परिवार के सभी सदस्य पहले से ही स्वतंत्रता के संघर्ष मे लगे हुवे थे। इसका भगत सिंह के व्यक्तित्व पर असर होना तय था। इसलिए भगत सिंह को बचपन से ही पता था , की आगे चलकर मुझे भी स्वतंत्रता सेनानी होना है।
भगत सिंघ ने ब्रिटिश स्कूल के बजाय “दयानन्द अग्लो वैदिक स्कूल (D. A. V School)” मे दाखिला लिया। उन्हें पढ़ना बहुत पसंद था। इसलिए सुरुवात से अपने स्कूल के दिनों भगत सिंह ने बहुत किताबे पढ़ डाली।
जालियाँ वाला बाग़ हत्याकांड और भगत सिंह
१३ अप्रैल १९१९ को जालियाँ वाला बाग़ हत्याकांड हुवा जहाँ पर ब्रिटिश सैनिकों ने जनरल डायर आदेशनुसार वहा पर जमा हुवी लोगों पर गोलिया चलाई। यह बात जब १२ साल के भगत सिंह ने सुनी तो उन्हें बहुत दुःख हुवा और वह ४० से ५० किलोमीटर जालियाँ वाला बाग़ पैदल चले गए।
वहाँ उन्होने खून से भरी मिट्टी को बोतल में भरकर रात को देर से घर पर गए। उनके बहन ने जब पूछा , इतनी देर क्यों हुवी?, कहाँ गए थे?, इस बोतल मे क्या है?, तब भगत सिंह बोले, “यह खून भरी मिट्टी मेरे उन भारत वासियों की है। जिसका मै अग्रेजो से बदला लूंगा।” और उस बोतल को रोज सुबह फूल चढ़ाकर श्रद्धांजलि देते थे।
असहकार आंदोलन और भगत सिंह
गांधीजी ने शांती और अहिंसा के मार्ग से असहकार आंदोलन (Non – corporation Movement) चालू किया। जिसमे विदेशी सेवा – वस्तु का बहिष्कार करके स्वदेशी वस्तुओ को अपनाना था। इस आंदोलन को देश भर के लोगों का काफी प्रोत्साहन मिला। इस आंदोलन से भगत सिंह भी प्रभावित थे और इसमें शामिल भी थे।
यह आंदोलन सफलता पूर्वक आगे जा रहा था। लेकिन ५ फरवरी १९२२ चौरी – चौरा में शांती से आंदोलन हो रहा था। उसी समय वहा के पुलिस ने एक – दो आंदोलन कारिओ को गोली मारी और आंदोलन ने हिंसा का रूप ले लिया। वहाँ के आंदोलनकारीओ ने पुलिस चौकी जला दी। जिसमे करीब – करीब १७ पुलिस कर्मिओं की मौत हो गई।
गांधीजी को इस बात की जब खबर लगी तो उन्हें लगा अब यह आंदोलन हिंसा का रूप ले रहा है, और लोग अभी इस आंदोलन के लिए तैयार नहीं है। इसलिए उन्होंने असहकार आंदोलन वापस ले लिया। इतना सफल आंदोलन गांधीजी द्वारा वापस लेने पर कई भारतीय लोग, क्रांतिकारी और भगत सिंह नाराज हो गए। यहाँ से भगत सिंह सशस्त्र सेनानी बन गए।
भगत सिंह की शादी
जब भगत सिंह १७ साल के थे। तब उनकी माँ उनको कहती “बेटा, शादी करले।” तो भगत सिंह कहते , “आज़ादी ही मेरी दुल्हन है।” जब घर से भगत सिंह पर शादी का ज्यादा दबाव आने लगा, तब उन्होंने घर छोड़ने का फैसला किया और घर पर चिट्ठी लिखकर भाग गए।
हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन असोसिएशन से जुड़ना
गांधीजी ने असहकार आंदोलन वापस लेने के बाद भगत सिंह ने सशस्त्र सेनानी बनने का फैसला लिया। उन्होंने नौजवान भारत सेना स्थापना की , वह आगे चलकर चंद्रशेखर आझाद की हिंदुस्तान रिपब्लिकन असोसिएशन से गठन हो गया। यह सशस्त्र सेना “हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन असोसिएशन” के नाम से जानने लग गई।
काकोरी कांड और भगत सिंह
आज़ादी की लढाई लढने के लिए पैसों की जरुरत थी, इसलिए भगत सिंह समेत १० क्रांतिकारीओ ने सरकारी खजाना लूटने के लिए काकोरी कांड का प्लान बनाया और ९ अगस्त १९२५ काकोरी कांड सफल भी हुवा लेकिन दो क्रान्तिकारी अशफाक उल्ला खान और रामप्रसाद बिस्मिल पकड़े गए। इन दोनों क्रांतिकारिओं को फांसी की सजा हुवी।
भगत सिंह की गिरफ्तारी
भगत सिंह को लिखने का शौक था। वह अखबारों में बड़े बड़े लेख लिखते और अपने लेख के पर्चे लोगों मे बाटते। अपने साथ लोगों को जोड़ने के लिए एक बार फिर भगत सिंह अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ अपने लेख पर्चे दशहरा मे बाँटने लगे। वहा अंग्रेजी पोलिस कर्मिओं ने भगत सिंह को पहली बार १९२७ मे गिरफ्तार किया। फिर उस ज़माने में ६० हजार रुपए की बेल देकर छुड़ाया गया। भगत सिंह छूटते ही आज़ादी संघर्ष के काम मे लग गए।
सायमन कमीशन १९२८
सर जॉन सायमन के अध्यक्षता मे सायमन कमीशन १९२८ भारत में ब्रिटिश सरकार द्वारा गठित एक समिति थी। जिसमे सभी अंग्रेज सदस्य थे और एक भी भारतीय सदस्य को शामिल नहीं किया गया। जिससे भारतीय जनता मे आक्रोश फ़ैल गया और विरोध होने लगा।
३० ऑक्टोबर १९२८ मे सायमन कमीशन आया तो लाल लाजपत राय के नेतृत्व मे लाहौर में “सायमन गो बैक” के नारे लगे। इस आंदोलन मे भगत सिंह ,राजगुरु ,चंद्र शेखर आज़ाद और उनके साथी भी शामिल थे। उस समय अंग्रेज अधिकारी जेम्स ए स्कॉट ने लाठीचार्ज का आदेश दिया। इस लाठीचार्ज में लाला लाजपत राय की १७ नवम्बर १९२८ में मृत्यु हो गयी।
सॉन्डर्स की हत्या १७ दिसंबर १९२८
लाला लाजपत राय की मृत्यु पर भगत सिंह बहुत दुःखी हुवे। इसका बदला लेने के लिए भगत सिंह, राजगुरु ,जय गोपाल और चंद्र शेखर आझाद इन्होने लाठीचार्ज का आदेश देने वाले अंग्रेज अधिकारी जेम्स ए स्कॉट की हत्या करने की प्लानिंग करी। इसे अंजाम देने के लिए चारो ने पुलिस ठाणे के आगे लाहौर मे अपनी जगह लेली। लेकिन उस दिन जेम्स ए स्कॉट नहीं आये। उसकी जगह सॉन्डर्स आये थे।
राजगुरु और भगत सिंघ ने १७ दिसंबर १९२८ मे सॉन्डर्स को गोली मारकर उसकी हत्या की , और लाला लाजपत राय के मृत्यु का बदला लिया। इस हत्या के बाद भगत सिंह, राजगुरु ,जय गोपाल और चंद्र शेखर आझाद भैस बदल कर भाग गए। किसी तरह भगत सिंह कलकत्ता भागने मे सफल हुवे।
भगत सिंह द्वारा सेन्ट्रल असेंबली मे बम फोड़ने की प्लानिंग
ब्रिटिश सरकार की मजदुर विरोधी निति से भगत सिंह सहमत नहीं थे। आंदोलन करते थे , मजदुर विरोधी निति के खिलाफ आवाज उठाते थे। लेकिन ब्रिटिश सरकार पर उसका कोई असर नहीं हुवा। इसीलिए भगत सिंह ने बटुकेश्वर के साथ मिलकर सेन्ट्रल असेंबली दिल्ली में कम ताकद वाला बम (low intensity bomb) फोड़ने की प्लानिंग कर दी ,और ८ अप्रैल १९२८ मे भगत सिंह और बटुकेश्वर ने सेंट्रल असेंबली मे ऐसी जगह बम फेके जहाँ कोई मानव हानि न हो और पर्चे फेंक कर वही खड़े रहे।
पर्चे पे लिखा था “बहारों को सुनाने के लिए धमाका जरुरी है।” उस बम के धुवे मे भगत सिंह भाग सकते थे , लेकिन वही खड़े रहकर “इन्कलाब जिंदाबाद” नारे देकर भगत सिंह और बटुकेश्वर ने अपनी गिरफ़्तारी करवाई।
भगत सिंग को सेन्ट्रल असेंबली मे बम फोड़ने की सजा
भगत सिंह और बटुकेश्वर को सेन्ट्रल मे असेंबली मे बम फोडने के जुल्म मे उम्र कैद की सजा सुनाई। जेल मे भी भगत सिंह का आंदोलन सुरु था। रहने के लिए अच्छी जगह नहीं , अच्छा खाना नहीं , पढ़ने के लिए अख़बार नहीं। इन सभी सुविधा पाने के लिए भगत सिंघ और उनके साथिओ ने भूख हड़ताल की।
६४ दिन के भूख हड़ताल के बाद जतिनचन्द्र दास की १३ सितम्बर १९२९ मृत्यु हो गयी। लगभग ११६ दिनों के बाद भगत सिंघ और उनके साथिओं ने ५ अक्टुम्बर १९२९ को अपनी मांगे पूरी होने पर अपनी भूख हड़ताल समाप्त कर दी। भगत सिंह २ साल तक जेल रहे ,उन्होंने वहाँ पर कई लेख लिखे और कई किताबे पढ़ डाली।
भगत सिंह को फांसी की सज़ा
२६ अगस्त १९३० को कोर्ट मे सॉन्डर्स की हत्या और सेंट्रल असेंबली में विस्फोट के लिए मुकदमा चला। ७ अक्टुम्बर १९३० को भगत सिंह , सुखदेव और राजगुरु कोर्ट मे अपराधी सिद्ध हुवे और तीनों क्रांतिवीरों को फांसी की सजा हुवी।
फांसी की सजा रुकवाने के लिए सुभाष चंद्र भोस और कई बड़े नेताओं ने प्रयास किये। लेकिन हमारे भगत सिंह नहीं चाहते थे उनकी सजा माफ़ हो। शहीद भगत सिंह का मानना था “क्रांतिकारी का जन्म देश पर मर-मिटने के लिए होता है और उनके मरने से कई क्रांतिकारी का जन्म होगा।”
ब्रिटिश सरकार के जज जी. सी. हिल्टन ने भगत सिंह और उनके साथी राजगुरु , सुखदेव की २४ मार्च १९३१ यह फांसी तारीख तय की। परतुं भगत सिंह को फांसी की सजा से भारतीय लोगों के विरोध प्रदर्शन से डर कर ब्रिटिश सरकार ने भारत के तीन महान क्रांतिकारि ओं को १२ घंटे पहले २३ मार्च १९३१ को फ़ासी देने का निर्णय लिया।
भगत सिंह के आखरी समय जब वह लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे , तब अधिकारिओं ने सुचना की फांसी देने का वक्त आ गया है। तब भगत सिंह ने कहा, “ठहरिये! पहले एक क्रांतिकारी दूसरे क्रांतिकारी से मिल तो ले।”
भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव तीनों एक दूसरे के गले मिले और बिना किसी डर के गाना गाते हुवे (मेरा रंग दे बसंती चोला, माये रंग दे बसंती चोला) फांसी के लिए चल पड़े।
तीनों क्रांतिकारों ने निडर होकर फांसी के फंदे को चूमा और पहन लिया। इसके बाद लाहौर सेंट्रल जेल २३ मार्च १९३१ को शहीद भगत सिंह और उनके साथी राजगुरु , सुखदेव को ७ बज के ३३ मिनिट पर फांसी दी गई।
ब्रिटिश सरकार ने फांसी के बाद आम जनता के विरोध प्रदर्शन से डरकर रातो-रात जेल की पीछे की दिवार तोड़कर तीनों क्रांतिकारिओं के शवों को बोरी में भरकर सतलज नदी पास फेंक कर भाग गए।
गांव वालो ने तीनो क्रांतिकारिओं के शवों के टुकड़े जमा करके विधि के साथ उनका अंतिम संस्कार किया। इसके लिए शांति जुलुस निकला गया जिसके लिए पुरुषो के हाथ मे काला कपड़ा बांधा था और महिलाओ ने काले कपड़े पहने थे। यह करके शोक मनाया गया।
अमर शहीद भगत सिंह जैसे क्रांतिकारी विचारों से आज भी भारत और पाकिस्तान की जनता प्रेरणा लेती है। शहीद सरदार भगत सिंह ने अपनी पूरी जवानी भारत देश के लिए समर्पित कर दी। ऐसे क्रांतिवीर भगत सिंह को शत -शत नमन!
२३ मार्च को शहीद भगत सिंह और उनके साथी राजगुरु, सुखदेव इन क्रांतिवीरों ने भारत माता के लिए जो बलिदान दिया, उसके याद मे शहीद दिन मनाया जाता है।
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२) भगत सिंह की जेल डायरी – हिंदी