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नियोजन के प्रकार: एक सरल मार्गदर्शिका

by rockingrohan523@gmail.comPosted on August 14, 2025

हर कार्य को सफल बनाने के लिए पहले से सोच-विचार करना और उसकी रूपरेखा तैयार करना जरूरी होता है। इसी प्रक्रिया को नियोजन कहा जाता है। नियोजन का मतलब है – किसी भी कार्य को पूरा करने से पहले उसका लक्ष्य तय करना, संसाधनों का उपयोग समझना और समय सीमा निर्धारित करना। इस लेख में हम सरल भाषा में नियोजन के प्रकार समझेंगे।

परिचय

नियोजन के प्रकार एक महत्वपूर्ण विषय है जो किसी भी संगठन या व्यक्ति के लिए आवश्यक होता है। नियोजन वह प्रक्रिया है जिसमें लक्ष्य निर्धारित किए जाते हैं, रणनीतियाँ विकसित की जाती हैं और उन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाते हैं। यह एक व्यावासिक प्रक्रिया है जो विशिष्ट समय सीमा के भीतर लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में निर्देशित करती है। अपने दैनिक जीवन में नियोजन का सही उपयोग करने से हम न केवल अपने कार्यों को और अधिक प्रभावी तरीके से व्यवस्थित कर सकते हैं, बल्कि जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में संतुलन बनाए रखने में भी मदद मिलती है।

नियोजन के कई प्रकार हैं, जैसे कि दीर्घकालिक नियोजन, तात्कालिक नियोजन, सामरिक नियोजन और परिचालन नियोजन। हर प्रकार का नियोजन उसके उद्देश्य और अवसरों के अनुसार भिन्न होता है। उदाहरण के लिए, दीर्घकालिक नियोजन का उद्देश्य भविष्य की संभावनाओं का अनुमान लगाना और उसके आधार पर रणनीति बनाना होता है, जबकि तात्कालिक नियोजन का ध्यान तात्कालिक समस्याओं के समाधान पर होता है। यह विभिन्न क्षेत्र में जैसे व्यवसाय, शिक्षा, और व्यक्तिगत विकास में अत्यंत महत्वपूर्ण है।

नियोजन का महत्व इसलिए है क्योंकि यह सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन में एक निश्चित दिशा प्रदान करता है। योजना के अनुसार कार्य करने से हमें समय की बर्बादी को कम करने, संसाधनों का सही उपयोग करने, और अधिक उत्पादक बनने में मदद मिलती है। न केवल संगठनों के लिए, बल्कि व्यक्तिगत जीवन में भी सही नियोजन के प्रकार अपनाना आवश्यक है, ताकि हम अपने लक्ष्यों की ओर सही तरीके से बढ़ सकें। इससे हम अपनी आकांक्षाओं को साकार करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हैं।

नियोजन क्या है?

नियोजन के प्रकार

नियोजन एक संगठित प्रक्रिया है जिसमें लक्ष्यों को निर्धारित करके उन्हें प्राप्त करने के लिए आवश्यक कदमों का चयन किया जाता है। यह प्रक्रिया किसी भी प्रकार की गतिविधियों के लिए महत्वपूर्ण होती है, चाहे वह व्यक्तिगत हो या व्यावसायिक। नियोजन के प्रकार विभिन्न हो सकते हैं, जैसे कि दीर्घकालिक, मध्यकालिक और तात्कालिक नियोजन, लेकिन सभी का मुख्य उद्देश्य एक ही होता है – निर्धारित उद्देश्यों की ओर अग्रसर होना।

नियोजन की प्रक्रिया में कुछ महत्वपूर्ण तत्व शामिल होते हैं। सबसे पहले, यह आवश्यक है कि लक्ष्यों को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाए। इसके बाद, संभावित विकल्पों की पहचान की जाती है, जिससे यह तय हो सके कि कौन सा रास्ता सबसे उचित होगा। इसके साथ ही, संसाधनों की पहचान करना और उनके प्रभावी उपयोग की योजना बनाना भी नियोजन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसके बाद, योजना को लागू करने का चरण आता है, जिसमें निर्धारित लक्ष्यों की ओर कार्य किया जाता है।

नियोजन की प्रक्रिया को समझने के लिए इसे कई चरणों में विभाजित किया जा सकता है: स्थिति का विश्लेषण, लक्ष्यों का निर्धारण, विकल्पों का मूल्यांकन, योजना का निर्माण, और योजना का कार्यान्वयन। प्रत्येक चरण में महत्वपूर्ण निर्णय लेने होते हैं, जो अंततः सफलता को प्रभावित करते हैं। इस प्रकार, नियोजन एक आवश्यक और प्रभावी उपकरण है, जो व्यक्तियों और संगठनों को लक्ष्य हासिल करने में मार्गदर्शन करता है। एक सफल नियोजन के तहत, न केवल लक्ष्य प्राप्त होते हैं, बल्कि यह सुनिश्चित करने में भी मदद करता है कि संसाधनों का प्रभावी उपयोग किया गया है।

नियोजन के प्रकार

नियोजन के प्रकार को समझना किसी भी संगठन के लिए आवश्यक है, क्योंकि यह उन्हें उनके लक्ष्य निर्धारित करने और उन्हें प्राप्त करने में मार्गदर्शन करता है। चार प्रमुख प्रकार की योजना हैं: रणनीतिक नियोजन, परिचालन नियोजन, परियोजना नियोजन और वित्तीय नियोजन। प्रत्येक प्रकार की अपनी विशेषताएँ और उपयोग होते हैं, जो विभिन्न लक्ष्यों और आवश्यकताओं के अनुसार अनुकूलित होते हैं।

रणनीतिक नियोजन दीर्घकालिक दृष्टिकोण पर आधारित होता है, जिसमें संगठन के उद्देश्य, लक्ष्य और उनकी प्राप्ति के लिए आवश्यक संसाधनों का निर्धारण किया जाता है। यह एक व्यापक दृष्टिकोण है, जो संगठन के समग्र दिशा को निर्धारित करता है। उदाहरण के लिए, एक कंपनी अपने दीर्घकालिक विकास को सुनिश्चित करने के लिए नए बाजारों में प्रवेश करने की योजना बना सकती है।

परिचालन नियोजन प्रतिदिन की गतिविधियों और कार्यों पर केंद्रित होता है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि संगठन की दैनिक गतिविधियाँ उसके दीर्घकालिक लक्ष्यों के अनुरूप हों। इसके अंतर्गत कार्यों की योजना बनाना, समय सीमा निर्धारित करना, और संसाधनों का आवंटन शामिल होता है। उदाहरण के लिए, एक विनिर्माण इकाई के लिए यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि उत्पादों का उत्पादन समय पर हो।

परियोजना नियोजन एक विशिष्ट कार्य या परियोजना के लिए तैयार किया जाता है। यह समय-निष्पाद्य कार्य, संसाधनों का आवंटन और बजट का निर्धारण करता है। परियोजनाओं के लिए उपयुक्त योजना बनाना आवश्यक है क्योंकि इससे समय और संसाधनों के उचित प्रबंधन में सहायता मिलती है।

वित्तीय नियोजन वित्तीय संसाधनों का प्रबंधन करने की प्रक्रिया है। इसके तहत बजट बनाना, निवेश, बचत और व्यय का संतुलन बनाए रखना शामिल है। एक संगठन के लिए सही वित्तीय नियोजन उनके दीर्घकालिक स्थिरता और विकास के लिए आवश्यक होता है।

इन चार प्रकारों का समुचित उपयोग संगठन को उनके उद्देश्यों को प्राप्त करने में मदद करता है, जिससे वे एक सुसंगत और प्रभावी कार्यप्रणाली को विकसित कर सकते हैं।

रणनीतिक नियोजन

रणनीतिक नियोजन किसी भी संस्था या संगठन के लिए एक महत्वपूर्ण तत्व है, जो दीर्घकालिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है। यह एक प्रणालीबद्ध प्रक्रिया है जिसमें संगठन के उद्देश्य, मिशन और विजन को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाता है। इस प्रक्रिया में बाहरी और आंतरिक कारकों का विश्लेषण किया जाता है, जिससे संगठनों को अपने निकट भविष्य के लिए कार्ययोजनाएं बनाने में मदद मिलती है।

रणनीतिक नियोजन का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह संगठनों को अपने संसाधनों का अधिकतम उपयोग करने में सक्षम बनाता है। जब एक संगठन स्पष्ट लक्ष्यों को निर्धारित करता है और उनके अनुरूप योजनाएं बनाता है, तो यह उसकी दक्षता और प्रभावशीलता को बढ़ाता है। उदाहरण के लिए, यदि एक कंपनी अपनी बिक्री मात्रा को बढ़ाना चाहती है, तो रणनीतिक नियोजन उसे बाजार अनुसंधान, उत्पाद विकास और विपणन रणनीतियों के माध्यम से सही दिशा में आगे बढ़ने में मदद करेगा।

इसके अलावा, रणनीतिक नियोजन निर्णय लेने की प्रक्रिया में सहायता करता है। जब संगठन अपनी प्राथमिकताओं को समझते हैं, तो वे तेजी से और प्रभावी ढंग से निर्णय ले सकते हैं। यह अनिश्चितता के समय में एक स्थिरता प्रदान करता है और कामकाज के विभिन्न पहलुओं के मध्य संतुलन बनाने में भी मदद करता है। अंत में, सही नियोजन के प्रकार संगठन को प्रतिस्पर्धी लाभ प्राप्त करने में भी मदद करते हैं, जिससे वे अपने लक्ष्यों को और तेजी से हासिल कर सकते हैं।

परिचालन नियोजन

परिचालन नियोजन एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जो किसी संगठन के दैनिक कार्यों को सफलतापूर्वक प्रबंधित करने में सहायक होती है। यह सभी स्तरों पर कार्यों का एकीकृत रूप है, जिसमें संसाधनों का अधिकतम उपयोग और संगठनात्मक लक्ष्यों की प्राप्ति सुनिश्चित की जाती है। परिचालन नियोजन के अंतर्गत कार्यशैली, निर्णय लेने की प्रक्रिया, और संगठन की संरचना को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाता है।

संगठन में परिचालन नियोजन का उद्देश्य प्रभावी कामकाज को सुनिश्चित करना और विभिन्न विभागों के बीच समन्वय स्थापित करना होता है। यह योजना कार्यों (जैसे की उत्पादन, गुणवत्ता नियंत्रण, ग्राहक सेवा) का निर्देशन करती है और प्रत्येक गतिविधि के लिए स्पष्ट लक्ष्य निर्धारित करती है। इसके द्वारा प्राथमिकता दी जाती है, ताकि संसाधनों का उपयोग सही ढंग से किया जा सके और कार्यों में समय की बर्बादी कम से कम हो।

परिचालन नियोजन विभिन्न आयामों में लागू किया जा सकता है, जैसे कि उत्पादन प्रक्रियाओं का नियोजन, आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन, या यहां तक कि मानव संसाधन नियोजन। अच्छी तरह से योजना बनाई गई परिचालन प्रक्रिया से कर्मचारी प्रदर्शन में सुधार होता है और संगठन का समग्र कार्यकुशलता में वृद्धि होती है। इससे न केवल संगठन के लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है, बल्कि वित्तीय स्थिरता और प्रतिस्पर्धात्मकता को भी सुनिश्चित किया जा सकता है।

इससे स्पष्ट होता है कि परिचालन नियोजन, नियोजन के प्रकारों में से एक है, जो दैनिक गतिविधियों में कुशलता लाने में अत्यावश्यक भूमिका निभाता है। यह सही दिशा में कार्यों को स्थापित करता है, जिससे संगठन की सफलता सुनिश्चित होती है।

परियोजना नियोजन

परियोजना नियोजन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें किसी विशेष परियोजना के उद्देश्यों, संसाधनों, और समय सीमा को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाता है। यह नियोजन के प्रकारों में से एक महत्वपूर्ण श्रेणी है, जिसका उद्देश्य परियोजना के समुचित कार्यान्वयन को सुनिश्चित करना होता है। परियोजना नियोजन में कई चरण शामिल होते हैं, जिनमें प्राथमिकता स्थापित करना, गतिविधियाँ निर्धारित करना, लगत का आकलन करना और समयसीमा बनाना शामिल है।

पहला चरण प्राथमिकता स्थापित करने का होता है, जहां परियोजना के लक्ष्यों को स्पष्ट रूप से समझा जाता है। यह सुनिश्चित करता है कि सभी व्यक्तियों को एक समान उद्देश्य के तहत कार्य करना है। इसके बाद, गतिविधियों का निर्धारण किया जाता है, जिसमें उन सभी कार्यों की सूची बनानी होती है जो परियोजना के सफल कार्यान्वयन के लिए आवश्यक होते हैं। यह चरण योजना में विशिष्टता लाता है और संबंधित टीमों को संगठित करने में मदद करता है।

फिर, लागत का आकलन किया जाता है, जो परियोजना की वित्तीय स्थिरता को सुनिश्चित करता है। यह न केवल सभी संसाधनों की लागत, बल्कि अप्रत्याशित खर्चों के लिए एक अनुमान भी शामिल करता है। यह प्रबंधन के लिए एक महत्वपूर्ण तत्व है, क्योंकि यह संगठन को बजट के अनुसार समय पर और प्रभावी तरीके से कार्य करने की अनुमति देता है। अंत में, समयसीमा का निर्धारण किया जाता है, जिससे सभी गतिविधियों के लिए एक स्पष्ट समय चक्र स्थापित किया जाता है। यह सुनिश्चित करता है कि सभी कार्य लक्षित तिथियों के भीतर पूरे हों और प्रणालीगत बाधाओं को तुरंत पहचाना जा सके।

इस प्रकार, परियोजना नियोजन किसी भी परियोजना के सफलतापूर्ण प्रबंधन के लिए आवश्यक है। यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि सभी पहलूयों को ध्यान में रखते हुए कार्य किए जाएं, जिससे किसी भी विफलता के जोखिम को कम किया जा सके।

वित्तीय नियोजन

वित्तीय नियोजन एक महत्वपूर्ण गतिविधि है जो व्यक्तियों और संगठनों को अपनी आर्थिक संभावनाओं को व्यवस्थित और अनुकूलित करने में सहायता करती है। यह प्रक्रिया विभिन्न तकनीकों और रणनीतियों का उपयोग करती है, ताकि लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए स्थायी वित्तीय आधार बनाया जा सके। वित्तीय नियोजन का मुख्य उद्देश्य वित्तीय सुरक्षा और समृद्धि हासिल करना है। इसके अंतर्गत आय, व्यय, बचत, निवेश, और करों का ध्यान रखा जाता है, ताकि आर्थिक संतुलन बनाए रखा जा सके।

वित्तीय नियोजन करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण तकनीकों का उपयोग किया जाता है। इनमें बजट बनाना, दीर्घकालिक और अल्पकालिक निवेश को समझना, तथा ऋण प्रबंधन शामिल है। एक उचित बजट बनाने से व्यक्ति या संगठन अपनी आय और व्यय को सही तरीके से संतुलित कर सकता है। साथ ही, दीर्घकालिक निवेश योजनाओं में भविष्य में संभावित लाभ पर ध्यान दिया जाता है, जिससे समग्र वित्तीय स्थिरता में वृद्धि होती है।

इसकी महत्ता को लेकर बात करें तो, वित्तीय नियोजन से व्यक्ति या संगठन को भविष्य में वित्तीय समस्याओं का सामना करने के लिए तैयार रहने में मदद मिलती है। यह अनपेक्षित आर्थिक संकटों से निपटने की क्षमता प्रदान करता है। सही वित्तीय नियोजन रणनीतियों के द्वारा, लोग अपने लिए एक सुरक्षित आर्थिक भविष्य का निर्माण कर सकते हैं। इस प्रकार, वित्तीय नियोजन केवल एक आवश्यकता नहीं है, बल्कि यह आर्थिक सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण है, जो सभी के लिए आवश्यक है।

नियोजन के लाभ

नियोजन के विभिन्न प्रकारों में रणनीतिक, संचालन, वित्तीय, और परियोजना नियोजन शामिल हैं। प्रत्येक प्रकार के नियोजन के अपने विशिष्ट लाभ हैं, जो संगठनों और व्यक्तियों को लक्ष्यों की दिशा में कार्य करने में सहायता करते हैं। सबसे पहले, रणनीतिक नियोजन लंबी अवधि के लक्ष्यों को स्पष्ट करता है और इसके माध्यम से एक संगठित दृष्टिकोण प्राप्त होता है। यह दीर्घकालिक दृष्टि के साथ स्वचलित कार्रवाई को सुनिश्चित करता है, जिससे किसी भी संगठन को अपने संसाधनों का बेहतर उपयोग करने के लिए मार्गदर्शन मिलता है।

अगला, संचालन नियोजन रोजमर्रा के कार्यों और प्रक्रियाओं का निर्धारण करता है। यह संगठन की आंतरिक दक्षता को बढ़ाने के उद्देश्य से गतिविधियों का सटीक निर्धारण करता है, विशेष रूप से उत्पादन और सेवा वितरण में। इस प्रकार के नियोजन के माध्यम से, संगठन अपने संसाधनों को प्रभावी रूप से प्रबंधित कर सकते हैं, जिससे लागत में कमी और कार्यक्षमता में वृद्धि होती है।

वित्तीय नियोजन, दूसरी ओर, व्यवसाय की दीर्धकालिक स्थिरता सुनिश्चित करता है। यह वित्तीय संसाधनों का सही उपयोग करने में मदद करता है, जिससे लाभप्रदता और विकास की सम्भावनाएँ बढ़ती हैं। इससे ना केवल खर्चों की पहचान होती है, बल्कि निवेश के अवसरों की पहचान करने में भी सहायता मिलती है। इस प्रकार के नियोजन से जोखिमों का प्रबंधन भी संभव होता है।

अंत में, परियोजना नियोजन किसी भी विशेष कार्य के लिए एक स्पष्ट रूपरेखा प्रदान करता है। इसमें संसाधनों की लेन-देन, समयसीमा, और कार्यों का विभाजन शामिल होता है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि सभी गतिविधियाँ समन्वित और समयबद्ध तरीके से पूरी हों। नियोजन के ये सभी प्रकार अंततः लक्ष्यों को सुधारने और संसाधनों के अधिकतम उपयोग में योगदान करते हैं।

नियोजन की चुनौतियाँ

नियोजन के प्रकार में विभिन्न पहलू शामिल हैं, और प्रत्येक प्रकार के नियोजन के अपने विशेष संज्ञानात्मक और व्यावहारिक चुनौतियाँ होती हैं। ये चुनौतियाँ परियोजना प्रबंधन, आर्थिक योजना, और रणनीतिक योजना में भिन्न प्रकार से प्रकट होती हैं। एक प्रमुख चुनौती अनिश्चितता है, जो समय-समय पर योजनाओं की प्रभावशीलता को प्रभावित कर सकती है। अनिश्चितता के कारण ऐसे बदलाव हो सकते हैं, जिनकी पूर्वानुमान नहीं किया जा सकता। इस बाधा का सामना करने के लिए, नियोजकों को विभिन्न संभावित परिदृश्यों का मूल्यांकन करने तथा लचीले दृष्टिकोण विकसित करने की आवश्यकता होती है।

इसके अतिरिक्त, संसाधनों का अभाव भी एक महत्वपूर्ण चुनौती है। नियोजन के प्रकार में आवश्यक संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित करना अनिवार्य है। यदि संसाधनों का प्रबंधन नहीं किया गया, तो योजना का क्रियान्वयन प्रभावी नहीं रह सकता। इस स्थिति से निपटने के लिए, उचित प्राथमिकताओं का निर्धारण और संसाधनों का उचित आवंटन आवश्यक हो जाता है।

नियोजन के दौरान विभिन्न हितधारकों की अपेक्षाओं का संतुलन भी एक चुनौती है। ये हितधारक कई बार भिन्न दृष्टिकोण और आवश्यकताएँ रखते हैं, जिससे योजना को लागू करना कठिन हो जाता है। इसके लिए संवाद और समावेशी निर्णय प्रक्रिया आवश्यक है, ताकि सभी पक्षों के दृष्टिकोणों को समझा जा सके। इस तरह की चुनौतियों का सामना कर पाने की क्षमता केवल अनुभव और संगठित कार्यविधियों से ही संभव है।

अंत में, नियोजन के प्रकार की चुनौतियाँ विभिन्न कारकों के कारण उत्पन्न होती हैं, जिनका समाधान उचित रणनीतियों के माध्यम से किया जा सकता है। सभी चुनौतियों का सामना एक सतत प्रक्रिया है, जिसमें समय, प्रशिक्षित मानव संसाधन और एक ठोस दृष्टिकोन की आवश्यकता होती है।

निष्कर्ष

नियोजन के प्रकार को समझकर हम अपने व्यक्तिगत जीवन से लेकर व्यवसायिक जीवन तक हर क्षेत्र में बेहतर काम कर सकते हैं। सही समय पर और सही तरह का नियोजन करने से सफलता के अवसर बढ़ जाते हैं।

“सफलता की पहली सीढ़ी नियोजन होती है। बिना योजना के लक्ष्य पाना कठिन होता है।”

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