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मनुष्य जीवन का उद्देश्य क्या है

by rockingrohan523@gmail.comPosted on July 3, 2025

हर व्यक्ति अपने जीवन में कभी न कभी यह सोचता है कि मनुष्य जीवन का उद्देश्य क्या है ? क्या यह केवल खाना, कमाना और परिवार पालने तक सीमित है? या फिर इसका कोई बड़ा और गहरा अर्थ है? इस सवाल का जवाब जानना जरूरी है, क्योंकि जब उद्देश्य स्पष्ट होता है, तब जीवन भी सही दिशा में चलता है।

परिचय

मनुष्य जीवन का उद्देश्य क्या है, यह प्रश्न मानवता के लिए एक गहरा विचार का विषय रहा है। मानव जीवन केवल जीवित रहने की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी यात्रा है जो व्यक्तिगत, सामाजिक और आध्यात्मिक विकास के विभिन्न चरणों को शामिल करती है। इस प्रश्न के माध्यम से, हम अपने अस्तित्व के अर्थ को समझने का प्रयास करते हैं, और यह सुनिश्चित करते हैं कि हमारे कार्य और उद्देश्य मानवता के लिए सार्थक हों।

जीवन का उद्देश्य व्यक्तिगत परिपूर्णता, संबंधों की गहराई, और सामाजिक योगदान को जोड़ने वाला एक जटिल ताना-बाना है। जब हम उद्देश्य पर विचार करते हैं, तो हमें यह समझने की आवश्यकता होती है कि यह व्यक्तिगत अनुभवों, सांस्कृतिक प्रवृत्तियों और सामाजिक अपेक्षाओं से प्रभावित होता है। उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति का उद्देश्य उसकी शिक्षा, परिवार, और पेशेवर जिम्मेदारियों के आधार पर बदल सकता है।

इस संदर्भ में, मनुष्य का उद्देश्य केवल भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति तक सीमित नहीं है; बल्कि यह आत्म-साक्षात्कार, ज्ञान की खोज और सामूहिक कल्याण की दिशा में प्रयास करने के लिए भी महत्वपूर्ण है। जब कोई व्यक्ति अपनी क्षमताओं का उपयोग समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए करता है, तो उसका जीवन का उद्देश्य उसके व्यक्तिगत अनुभवों से बढ़कर समाज के लिए एक प्रेरणास्त्रोत बन सकता है।

इस प्रकार, मनुष्य जीवन का उद्देश्य एक ऐसा प्रश्न है जो न केवल व्यक्तिगत विकास के लिए बल्कि पूरे मानवता की प्रगति के लिए भी मौलिक है। यह हमें आत्मनिरीक्षण करने और अपने जीवन में गहरी समझ विकसित करने का अवसर प्रदान करता है, जिससे हमें यह सोचने का मौका मिलता है कि हम इस दुनिया में क्यों हैं और हमारा लक्ष्य क्या होना चाहिए।

जीवन का उद्देश्य का ऐतिहासिक दृष्टिकोण

मनुष्य जीवन का उद्देश्य क्या है

जीवन के उद्देश्य की खोज एक पुराना और गहरा विषय है, जिसे प्राचीन दार्शनिकों और धार्मिक ग्रंथों द्वारा विभिन्न तरीकों से प्रस्तुत किया गया है। प्राचीन भारत में उपनिषदों में जीवन के उद्देश्य को आत्मा की खोज के रूप में प्रस्तुत किया गया है। यह संधारणीयता के साथ, मानव जीवन का मुख्य लक्ष्य आत्मा के साथ एकता स्थापित करना है। अन्य दार्शनिक परंपराओं, जैसे कि बौद्ध धर्म में, जीवन के उद्देश्य को निर्वाण की प्राप्ति के रूप में देखा जाता है, जहाँ दुखों से मुक्ति पाई जाती है। जीवन के उद्देश्य की यह खोज साहित्य और कला में भी परिलक्षित होती है, जहाँ मानव अनुभव और अस्तित्व को गहराई से समझा जाता है।

दूसरी ओर, पश्चिमी दार्शनिकी, जैसे कि प्लेटो और अरस्तू, ने भी जीवन के उद्देश्य के सवाल पर विचार किया। प्लेटो ने जीवन के मकसद को ज्ञान और सत्य की खोज के रूप में प्रस्तुत किया, जबकि अरस्तू ने इसे व्यक्तिगत उत्कृष्टता और नैतिक सद्गुणों की प्राप्ति के साथ जोड़ा। इसके अतिरिक्त, ईसाई धार्मिक ग्रंथों में जीवन के उद्देश्य को ईश्वर की सेवा और उसके साथ संबंध स्थापित करने पर जोर दिया गया है। इसके अनुसार, मनुष्य का जीवन ईश्वर की इच्छा के अनुरूप जीने और उसके प्रेम और सेवा में समर्पित रहने में निहित है।

आधुनिक युग में, जीवन के उद्देश्य के संदर्भ में मानवीयता का विचार उभरा है, जहाँ व्यक्तिगत खुशियों, सृजनात्मकता और समाज की सेवा को प्राथमिकता दी गई है। विभिन्न मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों ने भी जीवन के उद्देश्य को आत्म-साक्षात्कार और व्यक्तिगत विकास के संदर्भ में देखा है। इस प्रकार, ऐतिहासिक दृष्टिकोण से, जीवन का उद्देश्य बहुत विविध है और इसकी व्याख्या विभिन्न संस्कृतियों और समय-काल में भिन्नता दर्शाती है।

व्यक्तिगत विकास और उद्देश्य

व्यक्तिगत विकास, जिसे आत्म-साक्षात्कार भी कहा जाता है, मानव जीवन के उद्देश्य का एक महत्वपूर्ण पहलू है। इसे उस प्रक्रिया के रूप में समझा जा सकता है जिसमें व्यक्ति अपनी क्षमताओं, ज्ञान और अनुभव को बढ़ाने के लिए प्रयास करता है। यह न केवल व्यक्तिगत उन्नति का मार्ग है, बल्कि यह समाज और संस्कृति में सकारात्मक परिवर्तन लाने का भी माध्यम है। व्यक्तिगत विकास के जरिए हम न केवल अपने आत्म विश्वास को बढ़ाते हैं, बल्कि अपने आस-पास के लोगों के साथ सामंजस्य भी स्थापित करते हैं।

आत्म-साक्षात्कार का अर्थ है अपने भीतर के सत्य को पहचानना और समझना। यह प्रक्रिया हमें यह एहसास कराती है कि हमारा जीवन केवल भौतिक उपलब्धियों तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे भी आगे बढ़कर एक गहरा उद्देश्य है। जब हम व्यक्तिगत विकास की ओर अग्रसर होते हैं, तो हम न केवल अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते हैं, बल्कि अपने आसपास के लोगों को भी प्रेरित करते हैं। यह सोचने की क्षमता विकसित होती है कि हम अपनी परीक्षा का सामना कैसे करें और जीवन में सही विकल्प कैसे चुनें।

व्यक्तिगत विकास अवश्य ही हमारी सोच, भावना और कर्म को प्रभावित करता है। यह एक चयनित उद्देश्य के प्रति जागरूकता उत्पन्न करता है। उदाहरण के लिए, जब हम अपने कार्यों, निर्णयों और प्राथमिकताओं को सुधारने पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो यह हमें न केवल बेहतर मानव बनने की दिशा में प्रेरित करता है, बल्कि हमारे जीवन के उद्देश्य को भी स्पष्ट करता है। इस प्रकार, व्यक्तिगत विकास और उद्देश्य का आपस में गहरा संबंध है। इस नाते, अपने आप में सुधार लाने के प्रयास जीवन के उद्देश्य की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

सामाजिक जिम्मेदारियों का महत्व

मनुष्य जीवन का उद्देश्य केवल व्यक्तिगत सुख और संपत्ति प्राप्त करना नहीं है, बल्कि यह समाज के प्रति जिम्मेदारियों का निर्वहन भी है। सामाजिक जिम्मेदारियों का मतलब है कि एक व्यक्ति को अपनी गरिमा और भलाई के साथ-साथ अपने आस-पास के समाज की भलाई का भी ध्यान रखना चाहिए। जब हम समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझते हैं, तब हम एक सामूहिक जीवन जीने के लिए प्रेरित होते हैं, जहां हम दूसरों की अच्छी स्थिति के लिए चिंतित होते हैं।

इस संदर्भ में, समाज की भलाई का महत्व अत्यधिक है। हर व्यक्ति की व्यक्तिगत भलाई केवल तभी संभव है जब समाज समृद्ध और सशक्त हो। उदाहरण के लिए, शिक्षा, स्वास्थ्य, और सुरक्षा जैसे मूलभूत अधिकारों की उपलब्धता समाज की प्रगति का संकेत हैं। एक व्यक्ति जो अपने समाज की भलाई में योगदान देता है, वह न केवल अपने लिए बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी एक बेहतर भविष्य का निर्माण करता है।

इसके अलावा, सामाजिक जिम्मेदारियों का निर्वहन करने से एक मजबूत समुदाय का निर्माण होता है। जब लोग एक-दूसरे की सहायता करते हैं, तो जटिल समस्याओं का समाधान सामूहिक प्रयासों द्वारा किया जा सकता है। यह न केवल सामाजिक एकता को बढ़ावा देता है, बल्कि व्यक्‍तिगत विकास में भी मदद करता है। जब हम समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझते हैं, तो हम जीवन के वास्तविक उद्देश्य को पहचानते हैं, जो हमें एक मज़बूत और सहायक समाज की दिशा में ले जाता है।

अंततः, समाज की सेवा और भलाई को प्राथमिकता देकर, हम न केवल अपने जीवन को सार्थक बनाते हैं, बल्कि दूसरों के जीवन में भी सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं। इस प्रकार, सामाजिक जिम्मेदारियों का पालन करने से न केवल समाज को लाभ मिलता है, बल्कि हमारे व्यक्तिगत जीवन में भी संतोष और खुशी का अनुभव होता है।

सुख और संतोष का खोज

मनुष्य जीवन का उद्देश्य सदैव से एक महत्वपूर्ण प्रश्न रहा है। इस संदर्भ में सुख और संतोष की खोज एक केंद्रीय भूमिका निभाती है। हर व्यक्ति अपने जीवन में सुख की तलाश करता है, जो उसके जीवन की गुणवत्ता को निर्धारित करता है। यह सुख भौतिक संसाधनों में हो सकता है, लेकिन वास्तविक सुख अक्सर आंतरिक संतोष के द्वारा ही प्राप्त होता है।

सुख केवल आनंद का अनुभव नहीं है, बल्कि यह एक गहरा भावनात्मक और मानसिक स्थिति है, जो तब आती है जब हम अपने जीवन के उद्देश्य को पहचाने और उसे प्राप्त करने की कोशिश करते हैं। यह अनुभव हमारे व्यक्तिगत विकास, संबंधों और सामुदायिक सहभागिता से गहराई से जुड़ा हुआ है। संतोष की भावना हमें जीवन में जो भी स्थिति है, उसे स्वीकार करने और उससे खुश रहने की कला सिखाती है।

संतोष का तात्पर्य केवल बाहरी सुख से नहीं, बल्कि आंतरिक शांति से भी है। जब हम अपनी आकांक्षाओं और इच्छाओं को संतुलित करते हैं और अपनी वर्तमान परिस्थितियों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाते हैं, तो हम वास्तव में संतोष की अनुभूति कर पाते हैं। इससे हमारे जीवन में तनाव और चिंताओं की मात्रा कम होती है, और हम अधिक खुशहाल जीवन जीने की ओर अग्रसर होते हैं।

इस प्रकार, सुख और संतोष की खोज न केवल जीवन के उद्देश्य के रूप में महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमारे मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य के लिए भी आवश्यक है। इसे जीवन के विभिन्न पहलुओं में संतुलन स्थापित करने के एक साधन के रूप में देखा जा सकता है, जो हमें वास्तविक तृप्ति और खुशी देने में मदद करता है।

धर्म और आध्यात्मिकता

धर्म और आध्यात्मिकता का मानव जीवन के उद्देश्य में महत्वपूर्ण स्थान है। यह दोनों तत्व न केवल व्यक्ति की आंतरिक दुनिया को आकार देते हैं, बल्कि समाज की एकत्रित सोच और मूल्यों को भी प्रभावित करते हैं। धर्म एक संरचित प्रणाली है, जिसमें विश्वास, मान्यताएँ और आचार-व्यवहार के नियम शामिल होते हैं, जबकि आध्यात्मिकता एक व्यक्तिगत और आंतरिक अनुभव है, जो व्यक्ति को अपने अस्तित्व और उसके गहरे अर्थ से जोड़ने का कार्य करती है।

धर्म अक्सर समाज में एक नैतिक ढांचा प्रदान करता है, जो सही और गलत के बीच अंतर को स्पष्ट करता है। इसके पीछे का उद्देश्य मानवता के लिए एक सुरक्षित और संगठित जीवन प्रदान करना है। यह जीवन के मूल्यों का निर्माण करता है, जो सभी व्यक्तियों को एक समान दिशा में मार्गदर्शन करते हैं। आध्यात्मिकता, दूसरी ओर, व्यक्तिगत आत्म-खोज की प्रक्रिया है। यह व्यक्ति को उसकी आंतरिक शक्तियों और क्षमताओं का अनुभव कराती है, जिससे वह आत्मा, ब्रह्मांड और मानवता के प्रति अपने कर्तव्यों का सही संज्ञान प्राप्त कर पाता है।

अनेक विचारकों का मानना ​​है कि आध्यात्मिकता मानव जीवन के उद्देश्य को समझने में सहायक होती है। यह उन सवालों के उत्तर खोजने में मदद करती है, जो व्यक्ति के अस्तित्व, उसकी पहचान और उसकी आत्मा के संबंध में हैं। आध्यात्मिकता अपने आप में एक संपूर्णता का अनुभव कराती है, जो आपको जीवन की जटिलताओं में संतुलन बनाए रखने की प्रेरणा देती है। जब व्यक्ति धर्म के सिद्धांतों के साथ अपने आध्यात्मिक अनुभवों को एकीकृत करता है, तो वह जीवन के सच्चे उद्देश्य की ओर अग्रसर होता है।

प्रकृति और पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी

मनुष्य जीवन का उद्देश्य केवल व्यक्तिगत लाभ और विकास को सिद्ध करना नहीं है। बल्कि, यह हमारे चारों ओर के पर्यावरण और प्रकृति के प्रति हमारी जिम्मेदारी के अनुरूप भी है। यह समझना आवश्यक है कि हम इस दुनिया में अकेले नहीं हैं, और हमारे कार्यों का प्रकृति पर गहरा प्रभाव होता है। पर्यावरण की रक्षा और उसकी देखभाल करना न केवल नैतिक दायित्व है, बल्कि यह हमारे सर्वांगीण जीवन के लिए भी आवश्यक है।

पर्यावरण की सुरक्षा के लिए हमें कई उपाय अपनाने की आवश्यकता है। पहले, हमें इस बात का आभास होना चाहिए कि हम किस प्रकार की गतिविधियों के माध्यम से प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर रहे हैं। अव्यवस्थित शहरीकरण, उद्योगों द्वारा प्रदूषण, और जलवायु परिवर्तन ये उन प्रमुख कारणों में से हैं जो हमारे पारिस्थितिकी तंत्र को संकट में डाल रहे हैं। इसलिए, हमें अपने जीवन में हर कदम पर सतत विकास की अवधारणा को अपनाना होगा।

दूसरे, व्यक्तिगत स्तर पर हम छोटे-छोटे कदम उठाकर भी बड़ा बदलाव ला सकते हैं। उदाहरण के लिए, प्लास्टिक के उपयोग को कम करना, स्थानीय उत्पादों को प्राथमिकता देना, और ऊर्जा की बचत से जुड़े उपाय करना ऐसे कई तरीके हैं जिनसे हम पर्यावरण की तस्वीर को बेहतर बना सकते हैं। इसके अतिरिक्त, वृक्षारोपण, जल संरक्षण और पारिस्थितिकी संतुलन को बनाए रखना भी हमारे दायित्वों में शामिल है।

इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि मनुष्य का जीवन केवल अपने विकास तक सीमित नहीं है, बल्कि यह प्रकृति और पर्यावरण के प्रति हमारी जिम्मेदारी की पूर्ति में भी निहित है। हमारी जिम्मेदारी है कि हम आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित और स्वच्छ पर्यावरण का निर्माण करें, ताकि जीवन का उद्देश्य पूर्ण हो सके।

अन्य जीवों के साथ सह-अस्तित्व

मनुष्य जीवन का उद्देश्य केवल व्यक्तिगत उन्नति और संतोष खोजने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह अन्य जीवों के साथ सह-अस्तित्व की अवधारणा को भी शामिल करता है। यह विचार कि मनुष्य अपने पर्यावरण में अन्य प्राणियों के साथ मिलकर जीवन यापन करे, मानवता के लिए आवश्यक है। जब हम जीवों की विविधता की अनदेखी करते हैं, तो इसका परिणाम पारिस्थितिकी तंत्र की अस्थिरता और जैव विविधता का ह्रास हो सकता है। मनुष्यों को अपने और अन्य प्राणियों के बीच संतुलन साधने की आवश्यकता है ताकि सभी जीवों को एक साथ रहने का मौका मिल सके।

सह-अस्तित्व का अर्थ है कि मनुष्य अन्य जीवों के साथ अपने संसाधनों का साझा करें और उनके अस्तित्व का सम्मान करें। ऐसा विवादास्पद नहीं होना चाहिए कि मानवता का विकास केवल तकनीकी उन्नति में नहीं, बल्कि अन्य जीवों की रक्षा और जीवन के लिए समर्थन में भी है। यह सह-अस्तित्व हमें सिखाता है कि रिश्ते बनाने और सहयोग करने से न केवल हमारे समाज को बल्कि पृथ्वी पर सभी जीवों को शक्ति मिलती है। यह हमारे पर्यावरण को स्थिर रखने और प्राकृतिक संसाधनों के सही उपयोग का मार्ग प्रदान करता है।

इसके अलावा, अन्य जीवों के साथ सह-अस्तित्व से हमें नैतिकता का एक नया दृष्टिकोण भी प्राप्त होता है। हमें यह महसूस करने की आवश्यकता है कि हमारा जीवन और हमारे आसपास के जीवों का अस्तित्व एक अनिवार्य भाग है। यह सह-अस्तित्व न केवल मनुष्य के विकास के लिए आवश्यक है, बल्कि यह सभी प्रजातियों की सुरक्षा में योगदान करता है। अंततः, जब हम विविधता को मानते हैं और अन्य जीवों के साथ सही तरीके से सह-अस्तित्व स्थापित करते हैं, तो यह मानव जीवन के उद्देश्य को और भी प्रामाणिक और पूर्ण बनाता है।

निष्कर्ष

मनुष्य जीवन का उद्देश्य एक गहन और समय के साथ विकसित होने वाला प्रश्न है, जिसका कोई एकल उत्तर नहीं है। विभिन्न दृष्टिकोण और सांस्कृतिक मान्यताएँ इस विचार पर विभिन्नता लाती हैं। हमने चर्चा की है कि मनुष्य का जीवन केवल भौतिक उपलब्धियों में सीमित नहीं होता। इसके अस्तित्व का प्रयोजन आत्मज्ञान, व्यक्तिगत विकास और समाज के प्रति सेवाभाव में भी निहित है। आत्मा की खोज, दूसरों के साथ संबंध स्थापित करना, और सामूहिक भलाई के लिए काम करना हैं कुछ ऐसे पहलू हैं जो इस चर्चा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

इसके अलावा, विभिन्न धार्मिक और दार्शनिक विचारधाराएँ मनुष्य जीवन के उद्देश्य को अलग-अलग तरीकों से परिभाषित करती हैं। जैसे कि कुछ मानते हैं कि जीवन का मुख्य उद्देश्य सुख और संतोष की प्राप्ति है, वहीं अन्य लोग इसे ज्ञान और शिक्षा के माध्यम से व्यक्त करते हैं। यह स्पष्ट है कि उद्देश्य के प्रति अनुभवात्मक दृष्टिकोण हमारे व्यक्तिगत जीवन में गहराई और अर्थ जोड़ता है।

अंत में, प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन के उद्देश्य को पहचानने और उसे प्राप्त करने के लिए अपनी यात्रा पर विचार करना चाहिए। यह न केवल उन्हें प्रेरित करेगा, बल्कि उन्हें अपने आस-पास के लोगों के लिए भी एक सकारात्मक प्रभाव डालने की दिशा में मार्गदर्शन करेगा। आत्म-ध्यान और समाज सेवा को प्राथमिकता देकर, हम सभी अपने जीवन के उद्देश्य को स्पष्ट कर सकते हैं और इसके माध्यम से वास्तव में एक संतोषजनक और पूर्ण जीवन जी सकते हैं।

मनुष्य जीवन का उद्देश्य क्या है — इसका उत्तर हर व्यक्ति के भीतर छुपा होता है। हमें अपने जीवन को केवल खुद के लिए नहीं, बल्कि दूसरों की भलाई और समाज के हित के लिए भी जीना चाहिए। यही एक सच्चे, सफल और संतोषजनक जीवन की पहचान है।

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