अपने देश में खेलों को कामयाबी का लक्ष्य नहीं बनाया जाता। अपने देश में बहुतांश लोग खेल को अपने जीवन में दुय्यम दर्जा देते है। क्यों?

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विश्व की सभी देशो में से दूसरे स्थान की सबसे ज्यादा लोकसंख्या होने के बावजूद, ओलिंपिक जैसे विश्वस्तरीय खेलो में हमारा देश बहुत कम ओलिंपिक पदक जीतता है। क्यों?

देश में खेल की जो परिस्थिति है। वह एक मानसिकता है, इस मानसिकता को बदलना होगा।खेल में कामयाबी  हासिल करने के लिए खेलो के प्रति जागरूकता निर्माण करनी होगी।

अपने देश में खेल की क्या वास्तविकता है। खेल के प्रति हमारी जो मानसिकता है, उसे कैसे बदला जा सकता है?

अपने देश में क्रिकेट छोड़ कर बाकि, सभी खेलो में जागरूकता की कमी है। संसाधन की कमी, अच्छे कोच की कमी और खेल के प्रति विपरीत वातावरण क्यू है?

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देश के इतिहास मे ओलिंपिक  पदक जितने वाले खिलाड़िओ की जीतनी भी प्रशंसा की जाए कम है। खेल के प्रति विपरीत परिस्थिती के बावजूद भारत के लिए ओलिंपिक में पदक जितना प्रशंषनीय है।

सच मे देखा जाये, तो खेल खेलने में मजा आता है और इससे हम शारीरिक रूप से फिट भी रहते है। फिर भी खेलो को करिअर नहीं बनाया जाता।

हमारे बच्चे, भाई -बहन और दोस्त अगर सच में किसी खेल में अच्छे है। तो उन्हें उस खेल में आगे बढ़ने के लिए सहयोग करना चाहिए।